तकदीर में नहीं है मोहब्बत के लिए तरस गए | Hindi shayari | shayari sangrah

तकदीर में नहीं है मोहब्बत के लिए तरस गए वफा में कोई कमी नहीं छोड़ा फिर भी वह बेवफा होकर निकल गए आंखों में नमी का कुसूर मेरा भी है जो इस तरह टूटकर चाहता रहा विफल होने का अंदेशा पहले ही हो चुका था बिखर जाने तक पीछा करता रहा

मेरे मुकद्दर के बदलाव में भरपूर योगदान दिया है परिस्थितियों ने तोड़ कर रख दिया था नया जीवनदान दिया है इस एहसान की कीमत चुकाना आसान नहीं है

जिंदगी बन गई हो तुम्हारे बिना मेरा कोई वजूद नहीं होगा रिश्तो को मजबूत इस तरह बनाएंगे जो उम्र भर नहीं टूटेगा

जब कठिन परिस्थितियों में टूटकर बिखरने लगा ऐसे वक्त में आत्मविश्वास पैदा किया है उसके सुझाव और मेरे हुनर से मंजिल का सही रास्ता मिला है

सच्चाई की विजय, झूठ हार जाता है सत्यवादी इंसान समाज में पहचान पाता है जिधर कदम रखता है बाजी जीत जाता है

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