तकदीर में नहीं है मोहब्बत के लिए तरस गए वफा में कोई कमी नहीं छोड़ा फिर भी वह बेवफा होकर निकल गए आंखों में नमी का कुसूर मेरा भी है जो इस तरह टूटकर चाहता रहा विफल होने का अंदेशा पहले ही हो चुका था बिखर जाने तक पीछा करता रहा
मेरे मुकद्दर के बदलाव में भरपूर योगदान दिया है परिस्थितियों ने तोड़ कर रख दिया था नया जीवनदान दिया है इस एहसान की कीमत चुकाना आसान नहीं है
जिंदगी बन गई हो तुम्हारे बिना मेरा कोई वजूद नहीं होगा रिश्तो को मजबूत इस तरह बनाएंगे जो उम्र भर नहीं टूटेगा
जब कठिन परिस्थितियों में टूटकर बिखरने लगा ऐसे वक्त में आत्मविश्वास पैदा किया है उसके सुझाव और मेरे हुनर से मंजिल का सही रास्ता मिला है
सच्चाई की विजय, झूठ हार जाता है सत्यवादी इंसान समाज में पहचान पाता है जिधर कदम रखता है बाजी जीत जाता है
एक टिप्पणी भेजें