तेल लगाने वाली शायरी, चापलूसी महफिलें-ए-तरक्की, जलवा shayari इन हिंदी

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Mahfile tarakkee 

1. कुछ ना कुछ तो हासिल जरूर करना है इसीलिए तो मस्का लगाते हैं उनकी चाहतों से रूबरू हूं होशियारी लाज़वाब है वो तेल लगाकर चस्का लगाते हैं

2. मुझे मक्खन लगाने की आदत नहीं है मेरे दिल की आवाज़ है मूलधन सहित सब वापस करना पड़ेगा जो मिला है यह तो अभी ब्याज है 

3. आपकी हां में हां मिलना मेरा फर्ज है इसे कुछ और समझने की जरूरत नहीं है मुझे पता चल चुका है अब बिना तेल लगाए तरक्की नहीं है

4. आप जो कहते हो सच है यही जमाने की दस्तूर है जो आपकी अल्फाजों को गलत कहें कहीं ना कहीं उनकी बहुत बड़ी भूल है

5. हां में हां मिलाने को मेरा मन हर वक्त तैयार है क्या बताएं इसके बिना काम नहीं चलता, आजकल मक्खन लगाना अपना रोजगार है 

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